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रा॒ये नु यं ज॒ज्ञतू॒ रोद॑सी॒मे रा॒ये दे॒वी धि॒षणा॑ धाति दे॒वम्। अध॑ वा॒युं नि॒युतः॑ सश्चत॒ स्वाऽ उ॒त श्वे॒तं वसु॑धितिं निरे॒के ॥२४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

रा॒ये। नु। यम्। ज॒ज्ञतुः॑। रोद॑सी॒ इति॒ रोद॑सी। इ॒मे इती॒मे। रा॒ये। दे॒वी। धि॒षणा॑। धा॒ति॒। दे॒वम्। अध॑। वा॒युम्। नि॒युत॒ इति॑ नि॒ऽयुतः॑। स॒श्च॒त॒। स्वाः। उ॒त। श्वे॒तम्। वसु॑धिति॒मिति॒ वसु॑ऽधितिम्। नि॒रे॒के ॥२४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:24


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (इमे) ये (रोदसी) आकाश, भूमि (राये) धन के अर्थ (यम्) जिसको (जज्ञतुः) उत्पन्न करें (देवी) उत्तम गुणवाली (धिषणा) बुद्धि के समान वर्त्तमान स्त्री जिस (देवम्) उत्तम पति को (राये) धन के लिये (नु) शीघ्र (धाति) धारण करती है। (अध) इस के अनन्तर (निरेके) निश्शङ्क स्थान में (स्वाः) अपने सम्बन्धी (नियुतः) निश्चय कर मिलाने वा पृथक् करनेवाले जन (श्वेतम्) वृद्ध (उत) और (वसुधितिम्) पृथिव्यादि वसुओं के धारण के हेतु (वायुम्) वायु को (सश्चत) प्राप्त होते हैं, उस को तुम लोग जानो ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग बल आदि गुणों से युक्त सब के धारण करनेवाले वायु को जान के धन और बुद्धि को बढ़ावें। जो एकान्त में स्थित हो के इस प्राण के द्वारा अपने स्वरूप और परमात्मा को जानना चाहें तो इन दोनों आत्माओं का साक्षात्कार होता है ॥२४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(राये) धनाय (नु) सद्यः (यम्) (जज्ञतुः) जनयतः (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (इमे) प्रत्यक्षे। अत्र वाच्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीति प्रकृतिभावाऽभावः (राये) धनाय (देवी) दिव्यगुणा (धिषणा) प्रज्ञेव वर्त्तमाना (धाति) दधाति (देवम्) दिव्यं पतिम् (अध) अथ (वायुम्) (नियुतः) निश्चयेन मिश्रणाऽमिश्रणकर्त्तारः (सश्चत) प्राप्नुवन्ति। अत्र व्यत्ययः (स्वाः) सम्बन्धिनः (उत) (श्वेतम्) वृद्धम् (वसुधितिम्) पृथिव्यादिवसूनां धितिर्यस्मात् तम् (निरेके) निर्गतशङ्के स्थाने ॥२४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्या ! इमे रोदसी राये यं जज्ञतुर्देवी धिषणा यं देवं राये नु धाति। अध निरेके स्वा नियुतः श्वेतमुत वसुधितिं वायुं सश्चत, तं यूयं विजानीत ॥२४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! भवन्तो बलादिगुणयुक्तं सर्वस्य धर्त्तारं वायुं विज्ञाय धनप्रज्ञे वर्धयन्तु, यद्येकान्ते स्थित्वाऽस्य प्राणस्य द्वारा स्वात्मानं परमात्मानं च ज्ञातुमिच्छेयुस्तर्ह्यनयोः साक्षात्कारो भवति ॥२४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! बलांनीयुक्त व सर्वांनी धारण करणाऱ्या वायूला जाणून धन व बुद्धी वाढवा. जे एकांतात बसून निश्चय करतात व प्राणाद्वारे आपले स्वरूप व परमेश्वराचे स्वरूप यांना जाणू इच्छितात त्यांना आत्मा व परमात्मा या दोघांचाही साक्षात्कार होतो.